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गलत होते देखना और सहना पाप है

जी हां दोस्तों जिस तरह अधर्म करना पाप है उसी तरह अधर्म सहना और उसे ना रोकना यह भी पाप कहलाता है बहुत सारे लोग अपने जीवन में यही सोचते है की मैंने तो ऐसा कोई पाप नहीं किया है तो फिर ये सजा मुझे क्यों मिल रही है, गलत होते देखना और सहना पाप है.

यहाँ हम कुछ समझाने की कोशिश करते है शायद आपको clear हो जाये की असल में होता कैसे है. जब हम में से ही कोई गलत होते हुए देख लेता है या खुद उसके साथ भी हो सकता है तो हम में से कई लोगो के मन में एक perception होता है यार में इस झंजट में नहीं पड़ना चाहता हूँ.

या इससे मेरा कोई भी लेना देना नहीं है या फिर हो सकता है जब आपके साथ कुछ गलत होता है या कोई अन्य व्यक्ति गलत करता है तो हम ये सोच लेते है कि ये आदमी तो रोज सबके साथ ऐसा ही करता है इससे बचना ठीक रहेगा.

इसीलिए आपको लगता है कि आप एक समझदार इंसान कि तरह वहाँ से बचके तो आ गये परंतु आप ने उस वक्त पाप सहा जिससे आप उसके हक़दार बने, तो दोस्तों अब आपको कुछ जरूर समझ में आया होगा कि कैसे आप बिना कुछ किये भी पाप के भागीदार बनते है.

गलत होते देखना और सहना पाप है

एक बात ध्यान रखे अपनी सोच को बदले और अपने साथ गलत न होने दे लेकिन आपको ये भी याद रखना होगा कि आप किसी के साथ अन्याय न करे. यह बात भी सच है कि इंसान अपने कर्मों के अनुसार ही फल पाता है बात है गंगापुत्र भीष्म की जिन्होंने अधर्म होते देखा और इसी पाप के कारण उन्होंने बहुत दुख पाया.

जब महाभारत हुआ तब कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में घायल होकर भीष्म पितामह बाण की शैय्या पर लेटे थे अंदर से वे बहुत दुखी हो रहे थे सूर्यास्त होने को आया था लेकिन पितामह के प्राण अभी निकल नहीं रहे थे. उनके प्राण मृत्यु के लिए झटपटा रहे थे बाण की शैय्या पर लेटे होने के बावजूद भी उनकी आंखों की दृष्टि आसपास दौड़ रही थी उनके मन को शांति नहीं मिल रही थी ऐसा क्यों हो रहा है उनकी समझ में नहीं आ रहा था. गलत होते देखना और सहना पाप है.

धनुर्धर अर्जुन ने धरती में जोर से बाण मारा पाताल गंगा बाहर फूट पड़ी और पवित्र गंगा जल भीष्म पितामह के मुंह में गया लेकिन उन्हें चैन नहीं मिला अगल-बगल पांडव खड़े हैं उनके मन में प्रश्न उठता है कि पितामह के प्राण अभी तक क्यों नहीं निकल पा रहे हैं? तब श्री कृष्ण पितामह के निकट गए पितामह, सुन सके इस तरह किंतु धीरे से बोले आपने पाप देखने का पाप किया है इसलिए प्राण नहीं निकल रहे हैं पांडवों को आश्चर्य हुआ कि श्रीकृष्ण यह क्या कह रहे हैं.

  • दादाजी ने पाप किया?
  • वह पाप के साक्षी हैं?
  • दादाजी तो पतित पावनी गंगा के पुत्र हैं संसार में उनके जैसा पवित्र और कौन है?

श्रीकृष्ण ने फिर जोर देकर कहा, हां पितामह ने पाप होते देखा है कौरवों की भरी सभा में दु:शासन द्रौपदी के वस्त्र खींच रहा था महारथियों के बीच एक अबला की लाज लूटी जा रही थी. तब वहाँ पितामह ने पाप की ओर देखा था लेकिन भीष्म पितामह चुपचाप बैठे सब कुछ होते देख रहे थे सबसे वृद्ध होने के बावजूद भी उन्होंने दु:शासन को ना रोका और ना उसका हाथ पकड़ा. गलत होते देखना और सहना पाप है

श्री कृष्ण की बातें पांडव खामोश होकर सुन रहे थे श्रीकृष्ण ने पितामह से कहा पितामह विचार करें-

  • उस समय द्रौपदी के मन में क्या हो रहा होगा?
  • उसकी आत्मा को कितना कष्ट हो रहा होगा?
  • आपने दु:शासन का पाप अपनी नजरों से देखा था न?
  • उस पाप के आप साक्षी थे या नहीं?

अधर्म करना पाप है, उसी तरह दूसरों के अधर्म चुपचाप देखना और उसे रोकना नहीं यह भी पाप है वही पाप आपको इस समय कष्ट दे रहा है इसलिए ही आप के प्राण नहीं छूट रहे हैं आपकी आत्मा को रोना आ रहा है. बाणों की शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह की नज़रों के आगे वह प्रसंग चित्रपट की तरह दिखाई देने लगा द्रौपदी का दया की भीख मांगता चेहरा उनकी नजरों के आगे जा खड़ा हुआ. गलत होते देखना और सहना पाप है.

मन ही मन वह अपने पाप का पछतावा करने लगे ठीक उसी समय सूर्य उत्तरायण की तरफ झुका और पितामह ने पछताते पछताते प्राण छोड़ दिए. वैसे तो भीष्म पितामह खुद एक बहुत ज्ञानी और ब्रम्चारी व्यक्ति थे और गंगा के पुत्र थे इतने महान आत्मा होने के बावजूद होने सिर्फ गलत होते हुए देखा और उसको रोक नहीं बस ये उनका पाप था जिसकी बजह से उन्हें कष्ट उठाना पड़ा. गलत होते देखना और सहना पाप है.

सच ही कहा है गलत करना या गलत को सहना दोनों ही पाप होते है दोस्तों आप ऐसा करने से बचे.

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